Monday, August 27, 2018

NOTA : हमारा अधिकार हमारी अभिव्यक्ति अथवा राजनैतिक आतंकवाद

#NOTA_ हमारा अधिकार_ हमारी अभिव्यक्ति_ अथवा राजनीतिक आतंकवाद#
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हम "हिंदू" हैं! वर्तमान में हमारे आचार- विचार- विमर्श- व्यवहार का कोई नियम- धर्म नहीं है.... हम धर्मभीरु संप्रदाय पंडे-पुरोहित-मठाधीश में अधिक विश्वास व्यक्त करते हैं "ईश्वर" पर नहीं... हमारे मन के अपने- अपने 33 करोड़ देवी देवता हैं पर सर्वमान्य कोई एक ईश्वर नहीं... 33 करोड़ देवी-देवताओं कि मान-मनौव्वल के लिए उनके पौराणिक ग्रंथ, चालीसा, अष्टक, सप्तशती और न जाने क्या-क्या साहित्य रच दिए गए है, किंतु किसी भी पौराणिक रचनाकार ने उस ईश्वर के प्रति सच्ची दो लाइन भी ना  लिखी जा सकी है..
पूरे भारतवर्ष में यही हालात हैं कि प्रत्येक अक्षांश-देशांश में एक धर्म प्रणेता अस्तित्व में आ जाता है और उसके अनुयायी भी... इस तरह हम खंड-खंड भी हैं किंतु "धर्म- संस्कृति" के रूप में एक हैं..
............"धर्म- संस्कृति"....?....!..............
 धर्म संस्कृति वह निधि है अनादि से हम भारतीयों में बसी हुई है इस निधि से भारतवर्ष में बसे मानवों में से कोई भी अछूता नहीं है ना हिंदू..... ना मुसलमान... ना सिख.... ना इसाई... ना बौद्ध आदि-आदि..
 समस्त भारतीयों में धर्म- संस्कृति निर्विवाद रूप से सनातन वैदिक संस्कृति के रूप में स्थापित है... यही इसका गुण भी है जिसके कारण सभ्यता पतन और अतिक्रमण के दौर में भी यह अहिंसक- शांत सभ्यता और संस्कृति बची रही... धर्म- संस्कृति को तोड़ने के लिए अनेक प्रयास किए गए जिसमें प्रमुख रुप से प्रयास रहा वर्ण व्यवस्था को विकृत कर समाज में अस्थिरता उत्पन्न करना जिसमें मुगल सफल रहे... वर्तमान भारतवर्ष की हिंदू सभ्यता-संस्कृति इन्हीं मुगलो की देन है संस्कृति के इतने टूटने के बाद भी भारतीयों के DNA में बसी सनातन वैदिक धर्म- संस्कृति को नहीं मिटा पाए हैं.... जैसे पानी में नमक मिलाने सेपानी को खारा जरूर बना सकते हैं किंतु पानी के गुणधर्म नहीं बदल सकते और उपचार स्वरूप वक्त आने पर उस खारे पानी को उचित ताप देकर शुद्ध किया जा सकता है...
"धर्म- संस्कृति" को अनदेखा कर धर्म की श्रेष्ठता की इच्छा से अनेकों संस्कृति विग्रही पैदा हो गए हैं जो इस्लामिक विदेशी सभ्यताओं के प्रभाव में आ चुके हैं वे वही विदेशी आदर्श भारतवर्ष की इस धर्म- संस्कृति पर बलात आरोपित करना चाह रहे हैं... भारतवर्ष में संस्कृति विग्रह यहां पर भी नहीं रुकता इसमें उस सभ्यता के व्यक्ति भी शामिल हैं जिन्हें" हिंदू "  कहां जाता है.. यह हिंदू वही है जो इस भारतवर्ष की मूल "धर्म- संस्कृति"  के समीप होने का दावा करते हैं यह धार्मिक रूप से तो स्वयं को बलात् आरोपित नहीं करते किंतु मुगलों के द्वारा बनाई गई प्रक्षेपित वर्ण व्यवस्था जिसे आज जाति व्यवस्था- वर्ग व्यवस्था कहते हैं के श्रेष्ठि जन जिस भावना से 2014 में "धर्म- संस्कृति"  एकता का परिचय देकर भारतवर्ष में एक  दृढ़ राजनैतिक सत्ता हांसिल किए थे उसको 2019 के चुनाव में अपने श्रेष्ठता के चलते NOTA  का प्रयोग कर ध्वस्त करने पर तुले हुए हैं...
 चलिए कोई बात नहीं लोकतंत्र है सबका अपना-अपना मानव अधिकार है पर समस्या पर शांति से बैठ कर विचार करने का किसी का अधिकार नहीं!  वर्तमान भारतीय संस्कृति के कर्णधार वर्तमान राजनीतिक परिवेश के चलते अपने-अपने वर्ग के श्रेष्ठी धर्म-संस्कृति को किनारे कर " राजनीतिक आतंकवाद NOTA फैलाने में लगे हुए हैं"।
                 #आपका_विनोद_धांडोले

Monday, January 19, 2015

जीवन की तीन रेखाए

खड़ा हूँ, सूरज की तरफ रुख करके ...
आनंदित, प्रफुल्लित, पुलकित ...
सुबह हो गई हैं; और आज फिर एक...
झूमती सी लम्बी परछाई मेरे पीछे खडी हैं ....

खड़ा हूँ , तपते सूरज को अपने सर पर लेकर ...
पसीने से भीगा, हैरान, परेशान
चिलचिलाती दोपहर; और आज फिर एक ...
छटपटाती छोटी सी परछाई मेरे कदमों के तले पडी हैं ....

 खड़ा हूँ, सूरज की तरफ रुख करके ...
अशांत, निराश, डरा, सहमा
शाम का वक्त हैं , और आज फिर एक...
उदास सी लम्बी परछाई मेरे पीछे खडी हैं ...
हाँ जिन्दगी, तुम आज फिर से 
अंधेरों में गुम होती नज़र आ रही हो  ...

Wednesday, November 26, 2014

तूफ़ान

शहरों में गिरता हैं तिनका तो शोर मच जाता हैं ...
और तूफ़ान का चर्चा, चंहूँ ओर पहुँच जाता हैं ....
यूँ ही गिर जाते हैं दरख्त जंगलों में ...
आवाज होती हैं मगर सुन कोई नहीं पाता हैं ....
दोस्त, इंसानों की दुनिया के नियम भी बड़े अजीब हैं ....
यहाँ तूफ़ान के जोर पर उड़ते तिनकों का बवंडर  तो नजर आता हैं ....
पर जमीदोज हुआ दरख्त और उसके निशान नज़रअंदाज हो जाते हैं ....

Thursday, November 20, 2014

दिल कुकुरमुत्ता

तुम लाख लगा लो पहरे, 
ओठों को मुस्कुराने का बहाना मिल ही जाता हैं ...
......

जिन्दगी तेरी हलचल से,
दिल बहलाने का सामान मिल ही जाता हैं ...
......
तुम सामने हो मेरे और हर लम्हा जज्ब हो रहा हैं,
मेरी भावनाओं के सागर में, तुम्हारा अक्स प्यार से तर हो ही जाता हैं ....
......

तेरा प्यार झूठा ही सही, पर दिल बड़ी चीज हैं ,
मान लो तुम की ओस की बूंदों से भी, दिल कुकुरमुत्ता खिल ही जाता हैं ...

Thursday, November 13, 2014

तुम्हारे ख़यालों में ....

हर रात मैं, विचारों के शूलों से उलझ जाता हूँ,
          और सुबह तुम्हारे लिए, इक नया गुलाब लाता हूँ .
नहीं जानता तुम्हे पसंद आएगा भी या नहीं ?
           हर बार की तरह इस बार भी ......
हैं तुमसे प्यार, यह जाताना आएगा भी या नहीं ?
           अक्सर तुम्हारे ख़यालों में, इस कदर खो जाता हूँ ;
कुर्सी पर सर टेके ही सो जाता हूँ ..

Sunday, September 14, 2014

क्या मैं नास्तिक हूँ ?

जरूरी नहीं की प्रत्येक नास्तिक व्यक्ती सात्विक हो....
                         आस्तिकता मनुष्य की नकारात्मकता को नियंत्रित करती हैं, माना की मनुष्य के पास बुद्धी हैं पर वह प्रत्येक क्षण बुद्धि को चैतन्य नहीं रख सकता वह जाने-अनजाने बुद्धीहीनता का काम कर देता हैं बहुत से उदहारण हैं ... आस्तिकों की अंधश्रद्धा एक तरह से परमात्मा को नकारने वाली ही बात हैं जो बुद्धीहीनता को बढ़ावा देती हैं और व्यक्ती अपने अहंकार और अज्ञानता से मानवता को क्षति पहुचता हैं .... प्रत्येक आस्था की मान्यताओं में सिधान्तों के साथ करुणा का होना अत्यंत आवश्यक हैं ... जिस मान्यता में भी करुणा तत्व की कमी हैं उसके अनुयायी पूरी मानवता को समाप्त कर देंगे .... आस्तिकता वास्तव में मनुष्य में सात्विकता और मानवता का संचार करती हैं और मानवता,..समाज का निर्माण करती हैं ....
                      बस इतना कहना हैं 'विनोद' की नास्तिक व्यक्ती सात्विक हो तो वह नास्तिकता का दिखावा कर रहा हैं .....

Sunday, September 7, 2014

                      लिखने का शौक तो मुझे स्कूलों के ज़माने से हैं, जब भी मैं कोर्स की किताबें छोड़ कर प्रेमचंद, चन्द्र कांता संतती, और जासूसी उपन्यास पढता कुछ न कुछ लिखने को मेरा मन मचलता रहता था.
                       अपनी कोर्स की कापियों के पिछले पन्नो में अपने विचार लिखता, अपने अनुभव लिखता,  कवितायेँ बनता.... कविताओं से याद आया मैंने आठवी से फ़ाइनल(1993) तक करीब-करीब 450 के लगभग कविताये लिखी थी, जिसका संग्रह 5 कापियों के रूप में मेरे पास था ; पर अनदेखी में न जाने वह कहाँ खो गयी....
                      कुल मिला कर उपरोक्त आदतों का परिणाम मेरी पढाई पर सकारात्मक रूप से पड़ा मुझे किसी भी विषय में ज्यादा पढने - उलझने  और अतिरिक्त प्रयास की जरूरत नहीं पडी ... यह काल ऐसा था की जो भी पढो सीधे आत्मा द्वारा अवशोषित कर लिया जाता था ......