#NOTA_ हमारा अधिकार_ हमारी अभिव्यक्ति_ अथवा राजनीतिक आतंकवाद#
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हम "हिंदू" हैं! वर्तमान में हमारे आचार- विचार- विमर्श- व्यवहार का कोई नियम- धर्म नहीं है.... हम धर्मभीरु संप्रदाय पंडे-पुरोहित-मठाधीश में अधिक विश्वास व्यक्त करते हैं "ईश्वर" पर नहीं... हमारे मन के अपने- अपने 33 करोड़ देवी देवता हैं पर सर्वमान्य कोई एक ईश्वर नहीं... 33 करोड़ देवी-देवताओं कि मान-मनौव्वल के लिए उनके पौराणिक ग्रंथ, चालीसा, अष्टक, सप्तशती और न जाने क्या-क्या साहित्य रच दिए गए है, किंतु किसी भी पौराणिक रचनाकार ने उस ईश्वर के प्रति सच्ची दो लाइन भी ना लिखी जा सकी है..
पूरे भारतवर्ष में यही हालात हैं कि प्रत्येक अक्षांश-देशांश में एक धर्म प्रणेता अस्तित्व में आ जाता है और उसके अनुयायी भी... इस तरह हम खंड-खंड भी हैं किंतु "धर्म- संस्कृति" के रूप में एक हैं..
............"धर्म- संस्कृति"....?....!..............
धर्म संस्कृति वह निधि है अनादि से हम भारतीयों में बसी हुई है इस निधि से भारतवर्ष में बसे मानवों में से कोई भी अछूता नहीं है ना हिंदू..... ना मुसलमान... ना सिख.... ना इसाई... ना बौद्ध आदि-आदि..
समस्त भारतीयों में धर्म- संस्कृति निर्विवाद रूप से सनातन वैदिक संस्कृति के रूप में स्थापित है... यही इसका गुण भी है जिसके कारण सभ्यता पतन और अतिक्रमण के दौर में भी यह अहिंसक- शांत सभ्यता और संस्कृति बची रही... धर्म- संस्कृति को तोड़ने के लिए अनेक प्रयास किए गए जिसमें प्रमुख रुप से प्रयास रहा वर्ण व्यवस्था को विकृत कर समाज में अस्थिरता उत्पन्न करना जिसमें मुगल सफल रहे... वर्तमान भारतवर्ष की हिंदू सभ्यता-संस्कृति इन्हीं मुगलो की देन है संस्कृति के इतने टूटने के बाद भी भारतीयों के DNA में बसी सनातन वैदिक धर्म- संस्कृति को नहीं मिटा पाए हैं.... जैसे पानी में नमक मिलाने सेपानी को खारा जरूर बना सकते हैं किंतु पानी के गुणधर्म नहीं बदल सकते और उपचार स्वरूप वक्त आने पर उस खारे पानी को उचित ताप देकर शुद्ध किया जा सकता है...
"धर्म- संस्कृति" को अनदेखा कर धर्म की श्रेष्ठता की इच्छा से अनेकों संस्कृति विग्रही पैदा हो गए हैं जो इस्लामिक विदेशी सभ्यताओं के प्रभाव में आ चुके हैं वे वही विदेशी आदर्श भारतवर्ष की इस धर्म- संस्कृति पर बलात आरोपित करना चाह रहे हैं... भारतवर्ष में संस्कृति विग्रह यहां पर भी नहीं रुकता इसमें उस सभ्यता के व्यक्ति भी शामिल हैं जिन्हें" हिंदू " कहां जाता है.. यह हिंदू वही है जो इस भारतवर्ष की मूल "धर्म- संस्कृति" के समीप होने का दावा करते हैं यह धार्मिक रूप से तो स्वयं को बलात् आरोपित नहीं करते किंतु मुगलों के द्वारा बनाई गई प्रक्षेपित वर्ण व्यवस्था जिसे आज जाति व्यवस्था- वर्ग व्यवस्था कहते हैं के श्रेष्ठि जन जिस भावना से 2014 में "धर्म- संस्कृति" एकता का परिचय देकर भारतवर्ष में एक दृढ़ राजनैतिक सत्ता हांसिल किए थे उसको 2019 के चुनाव में अपने श्रेष्ठता के चलते NOTA का प्रयोग कर ध्वस्त करने पर तुले हुए हैं...
चलिए कोई बात नहीं लोकतंत्र है सबका अपना-अपना मानव अधिकार है पर समस्या पर शांति से बैठ कर विचार करने का किसी का अधिकार नहीं! वर्तमान भारतीय संस्कृति के कर्णधार वर्तमान राजनीतिक परिवेश के चलते अपने-अपने वर्ग के श्रेष्ठी धर्म-संस्कृति को किनारे कर " राजनीतिक आतंकवाद NOTA फैलाने में लगे हुए हैं"।
#आपका_विनोद_धांडोले
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हम "हिंदू" हैं! वर्तमान में हमारे आचार- विचार- विमर्श- व्यवहार का कोई नियम- धर्म नहीं है.... हम धर्मभीरु संप्रदाय पंडे-पुरोहित-मठाधीश में अधिक विश्वास व्यक्त करते हैं "ईश्वर" पर नहीं... हमारे मन के अपने- अपने 33 करोड़ देवी देवता हैं पर सर्वमान्य कोई एक ईश्वर नहीं... 33 करोड़ देवी-देवताओं कि मान-मनौव्वल के लिए उनके पौराणिक ग्रंथ, चालीसा, अष्टक, सप्तशती और न जाने क्या-क्या साहित्य रच दिए गए है, किंतु किसी भी पौराणिक रचनाकार ने उस ईश्वर के प्रति सच्ची दो लाइन भी ना लिखी जा सकी है..
पूरे भारतवर्ष में यही हालात हैं कि प्रत्येक अक्षांश-देशांश में एक धर्म प्रणेता अस्तित्व में आ जाता है और उसके अनुयायी भी... इस तरह हम खंड-खंड भी हैं किंतु "धर्म- संस्कृति" के रूप में एक हैं..
............"धर्म- संस्कृति"....?....!..............
धर्म संस्कृति वह निधि है अनादि से हम भारतीयों में बसी हुई है इस निधि से भारतवर्ष में बसे मानवों में से कोई भी अछूता नहीं है ना हिंदू..... ना मुसलमान... ना सिख.... ना इसाई... ना बौद्ध आदि-आदि..
समस्त भारतीयों में धर्म- संस्कृति निर्विवाद रूप से सनातन वैदिक संस्कृति के रूप में स्थापित है... यही इसका गुण भी है जिसके कारण सभ्यता पतन और अतिक्रमण के दौर में भी यह अहिंसक- शांत सभ्यता और संस्कृति बची रही... धर्म- संस्कृति को तोड़ने के लिए अनेक प्रयास किए गए जिसमें प्रमुख रुप से प्रयास रहा वर्ण व्यवस्था को विकृत कर समाज में अस्थिरता उत्पन्न करना जिसमें मुगल सफल रहे... वर्तमान भारतवर्ष की हिंदू सभ्यता-संस्कृति इन्हीं मुगलो की देन है संस्कृति के इतने टूटने के बाद भी भारतीयों के DNA में बसी सनातन वैदिक धर्म- संस्कृति को नहीं मिटा पाए हैं.... जैसे पानी में नमक मिलाने सेपानी को खारा जरूर बना सकते हैं किंतु पानी के गुणधर्म नहीं बदल सकते और उपचार स्वरूप वक्त आने पर उस खारे पानी को उचित ताप देकर शुद्ध किया जा सकता है...
"धर्म- संस्कृति" को अनदेखा कर धर्म की श्रेष्ठता की इच्छा से अनेकों संस्कृति विग्रही पैदा हो गए हैं जो इस्लामिक विदेशी सभ्यताओं के प्रभाव में आ चुके हैं वे वही विदेशी आदर्श भारतवर्ष की इस धर्म- संस्कृति पर बलात आरोपित करना चाह रहे हैं... भारतवर्ष में संस्कृति विग्रह यहां पर भी नहीं रुकता इसमें उस सभ्यता के व्यक्ति भी शामिल हैं जिन्हें" हिंदू " कहां जाता है.. यह हिंदू वही है जो इस भारतवर्ष की मूल "धर्म- संस्कृति" के समीप होने का दावा करते हैं यह धार्मिक रूप से तो स्वयं को बलात् आरोपित नहीं करते किंतु मुगलों के द्वारा बनाई गई प्रक्षेपित वर्ण व्यवस्था जिसे आज जाति व्यवस्था- वर्ग व्यवस्था कहते हैं के श्रेष्ठि जन जिस भावना से 2014 में "धर्म- संस्कृति" एकता का परिचय देकर भारतवर्ष में एक दृढ़ राजनैतिक सत्ता हांसिल किए थे उसको 2019 के चुनाव में अपने श्रेष्ठता के चलते NOTA का प्रयोग कर ध्वस्त करने पर तुले हुए हैं...
चलिए कोई बात नहीं लोकतंत्र है सबका अपना-अपना मानव अधिकार है पर समस्या पर शांति से बैठ कर विचार करने का किसी का अधिकार नहीं! वर्तमान भारतीय संस्कृति के कर्णधार वर्तमान राजनीतिक परिवेश के चलते अपने-अपने वर्ग के श्रेष्ठी धर्म-संस्कृति को किनारे कर " राजनीतिक आतंकवाद NOTA फैलाने में लगे हुए हैं"।
#आपका_विनोद_धांडोले